पैरागान कान्वेंट स्कूल
कक्षा – सातवीं
पाठ – १७ ( वीर कुंवर सिहं )
शब्दार्थ
१ विद्रोह – बगावत
२ व्यवस्था – इंतजाम
३ गुप्त – छिपा हुआ
४ पताका – झंडा
५ रणकौशल – युद्धकुशलता
६ जलाशय – तालाब
७ संवेदनशील – संवेदना वाला
निबंध से
प्रश्न 1.
वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया? [Imp.]
उत्तर
वीर कुंवर सिंह के व्यक्तित्व की निम्न विशेषताएँ हमें प्रभावित करती हैं-
- वीर सेनानी-कुँवर सिंह महान वीर सेनानी थे। 1857 के विद्रोह में उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया व अंग्रेजों को कदम-कदम पर परास्त किया। कुँवर सिंह की वीरता पूरे उत्तर भारत द्वारा भुलाई नहीं जा सकती। आरा पर विजय प्राप्त करने पर इन्हें फौजी सलामी भी दी गई।
- स्वाभिमानी-इन्होंने वीरता के साथ-साथ स्वाभिमानी की भी मिसाल दी। जब वे शिवराजपुर से गंगा पार करते हुए जा रहे थे तो डगलस की गोली का निशाना बन गए। उनके हाथ पर गोली लगी। उस समय वे न तो वहाँ से भागे और न ही उपचार की चिंता की, बल्कि हाथ ही काटकर गंगा में बहा दिया।
- उदार स्वभाव-वे अत्यधिक उदार स्वभाव के थे। किसी प्रकार का कोई जातिगत भेदभाव उनमें न था। यहाँ तक कि उनकी सेना में इब्राहिम खाँ और किफायत हुसैन मुसलमान होते हुए भी उच्च पदों पर आसीन थे। वे हिंदू-मुसलमान दोनों के त्योहार सबके साथ मिलकर मनाते थे।
- दृढ़निश्चयी-उन्होंने अपना जीवन देश की रक्षा हेतु समर्पित किया। जीवन के अंतिम पलों में इतने वृद्ध हो जाने पर भी सदैव युद्ध हेतु तत्पर रहते थे। यहाँ तक कि मरने से तीन दिन पूर्व ही उन्होंने जगदीशपुर में विजय पताका फहराई।।
- समाज सेवक-एक वीर सिपाही के साथ-साथ वे समाज सेवक भी थे। उन्होंने कई पाठशालाओं, कुओं व तालाबों का निर्माण करवाया। वे निर्धनों की सदा सहायता करते थे।
- साहसी-कुँवर सिंह का साहस अतुलनीय है। 13 अगस्त, 1857 को जब कुँवर सिंह की सेना जगदीशपुर में अंग्रेजों से परास्त हो गई तो उन्होंने साहस न छोड़ा, बल्कि भावी संग्राम की योजना बनाने लगे। सासाराम से मिर्जापुर होते हुए रीवा, कालपी, कानपुर, लखनऊ से आजमगढ़ की ओर बढ़ते हुए उन्होंने आजादी की आग को जलाए रखा। पूरे उत्तर भारत में उनके साहस की चर्चा थी। अंत में 23 अप्रैल, 1858 को आजमगढ़ में अंग्रेजों को हराते हुए उन्होंने जगदीशपुर में स्वाधीनता की विजय पताका फहरा कर ही दम लिया। |
प्रश्न 2.कुंवर सिंह को बचपन में किन कामों में मज़ा आता था? क्या उन्हें उन कामों से स्वतंत्रता सेनानी बनने में कुछ मदद मिली?
उत्तर-वीर कुंवर सिंह को बचपन में पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा घुड़सवारी करने, तलवारबाजी करने तथा कुश्ती लड़ने में मजा आता था। जब बड़े होकर स्वतंत्रता सेनानी बने तो इन कार्यों से उन्हें बहुत सहायता मिली। तलवार चलाने व तेज़ घुड़सवारी से तो वे कदम-कदम पर अंग्रेजों को मात देते रहे।
प्रश्न 3.सांप्रदायिक सद्भाव में कुँवर सिंह की गहरी आस्था थी। पाठ के आधार पर कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-कुँवर सिंह की सांप्रदायिक सद्भाव में गहरी आस्था थी। उनकी सेना में मुसलमान भी उच्च पदों पर थे। इब्राहीम खाँ तथा किफ़ायत हुसैन उनकी सेना में उच्च पदों पर आसीन थे। उनके यहाँ हिंदुओं तथा मुसलमानों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करते थे। उनके यहाँ दोनों धर्मों के त्योहार एक साथ मनाए जाते हैं। इतना ही नहीं उन्होंने पाठशालाओं के साथ मकतबों का भी निर्माण कराया।
प्रश्न 4 आमतौर पर मेले मनोरंजन, खरीद-फरोख्त एवं मेलजोल के लिए होते हैं। वीर कुंवर सिंह ने मेले का उपयोग किस रूप में किया?
उत्तर-प्रायः मेले का उपयोग मनोरंजन, खरीद-फरोख्त तथा मेलजोल के लिए किया जाता है, लेकिन कुँवर सिंह ने सोनपुर के मेले का उपयोग स्वाधीनता संग्राम की योजना बनाने के लिए किया। उन्होंने यहाँ सोनपुर के मेले का उपयोग अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी बैठकों एवं योजनाओं के लिए किया। यहाँ लोग गुप्त रूप से इकट्ठे होकर क्रांति के बारे में योजनाएँ बनाते थे। सोनपुर में एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। इसका आयोजन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है। इस मेले में हाथियों की खरीद-बिक्री होती है। इस मेले की आड़ में कुँवर सिंह अंग्रेजों को चकमा देने में सफल रहे।
प्रश्न 1.सन् 1857 के आंदोलन में भाग लेनेवाले किन्हीं चार सेनानियों पर दो-दो वाक्य लिखिए।
उत्तर-रानी लक्ष्मीबाई – झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई स्वाधीनता संग्राम की प्रथम महिला थीं, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई थी। वह स्वाभिमानिनी, कुशल योद्धा, कुशल प्रशासिका, विदुषी, भागवत गीता के सिद्धांतों को मानने वाली थी। अंग्रेजों से अंत तक लड़ती रही। लड़ते-लड़ते 23 वर्ष की अल्पायु में वीरगति को प्राप्त हो गई।
मंगल पांडे – अंग्रेजी सेना का सिपाही मंगल पांडे कट्टर धर्मावलंबी था। कारतूस में गाय और सुअर की खबर फैलने के बाद उन्होंने विद्रोह की शुरुआत की थी।
तात्या टोपे – तात्या टोपे का मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग था। ये झाँसी की रानी की सेना में सेनापति थे। इन्हें 18 अप्रैल, 1859 को फाँसी पर लटका दिया गया था।
बहादुर शाह ज़फ़र – मई, 1857 में विद्रोहियों ने दिल्ली पर कब्जा करके बहादुर शाह दुवितीय को पुनः भारत का सम्राट घोषित कर दिया। 82 वर्षीय बहादुर शाह ने बख्त खाँ के सहयोग से विद्रोह का नेतृत्व किया था। उन्हें अपना शेष जीवन रंगून के जेल में बिताना पड़ा।