कक्षा -7 ( हिंदी कार्यपत्रिका )  पाठ -11 (रहीम के दोहे )

पैरागान  कान्वेंट स्कूल

सैक्टर – बी ,चंडीगढ़

कक्षा -7 ( हिंदी कार्यपत्रिका )

                                                                                                             पाठ -11 (रहीम के दोहे )

  • शब्दार्थ :-

1)  संपत्ति      –      धन – दौलत                7) तरुवर –  पेड़

2)   सठो       –             अपने                  8)   रीत   –   परंपरा

3) सांचे         –               सच्चे                  9) छोह   –  लगाव

4)  मीन         –              मछली             10 )सँचहि   –  इकट्ठी

5) विपत्ति       –               मुसीबत           11)सुजान  – सज्जनता

6)   तजि        –              त्यागना             12)  थोथे  –   खाली

 

  • भावार्थ
  1. कहिरहीमसंपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।

बिपतिकसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥

अर्थ : रहीम दास जी ने इस दोहे में सच्चे मित्र के विषय में बताया है। वो कहते हैं कि सगे-संबंधी रुपी संपत्ति कई प्रकार के रीति-रिवाजों से बनते हैं। पर जो व्यक्ति आपके मुश्किल के समय में आपकी मदद करता है या आपको मुसीबत से बचाता है वही आपका सच्चा मित्र होता है।

 

  1. जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।

रहिमनमछरी नीर को तऊ छाँड़ति छोह॥

अर्थ : इस दोहे में रहीम दास जी ने मछली के जल के प्रति घनिष्ट प्रेम को बताया है। वो कहते हैं मछली पकड़ने के लिए जब जाल पानी में डाला जाता है तो जाल पानी से बाहर खींचते ही जल उसी समय जाल से निकल जाता है। परन्तु मछली जल को छोड़ नहीं सकता और वह पानी से अलग होते ही मर जाता है।

  1. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि पान।

कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

अर्थ : रहीम दास जी इन पंक्तियों में कहते हैं जिस प्रकार पेड़ अपने ऊपर फले हुए फल को कभी नहीं खाते हैं, तालाब कभी अपने अन्दर जमा किये हुए पानी को कभी नहीं पीता है उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति / परोपकारी व्यक्ति भी अपना इक्कठा किया हुआ धन से दूसरों का भला करते हैं।

 

  1. थोथे बादर क्वार के, ज्योंरहीमघहरात

धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात

अर्थ : रहीम जी कहते हैं जिस प्रकार क्वार महीने में (बारिश और शीत ऋतू के बिच) आकाश में घने बादल दीखते हैं पर बिना बारिश किये वो बस खाली गडगडाहट की आवाज़ करते हैं उस प्रकार जब कोई अमरी व्यक्ति कंगाल हो जाता है या गरीब हो जाता है तो उसके मुख से बस घमंडी बड़ी-बड़ी बातें ही सुने देती हैं जिनका कोई मूल्य नहीं होता।

 

  1. धरती की सी रीत है, सीत घाम मेह

जैसी परे सो सहि रहै, त्यों रहीम यह देह॥

अर्थ : इस दोहे में रहीम दास जी धरती के साथ-साथ मनुष्य के शरीर की सहन शक्ति का वर्णन किया हैं। वो कहते हैं इस शरीर की सहने की शक्ति धरती समान है जिस प्रकार धरती सर्दी-गर्मी वर्षा की विपरीत परिस्तिथियों को झेल लेती है उसी प्रकार मनुष्य का शरीर भी जीवन में आने वाले सुख-दुख  सहने की शक्ति रखता है।